सार्वजनिक साहसों की बदलती हुई भूमिका समझाइए ।
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सार्वजनिक साहस की बदलती हुई भूमिका : सार्वजनिक साहस की बदलती हुई भूमिका पर विचार करें तो इसमें आमूल परिवर्तन देखने को मिलता है । भारत ने वर्ल्ड ट्रेड ओर्गेनाइजेशन (WTO = World Trade Organization) में हस्ताक्षर करने के बाद अपने देश में निजीकरण (Privatization) का अभियान चल रहा है । ऐसी स्थिति में सरकार ने सार्वजनिक साहस को निजी साहस में परिवर्तन करने का विचार कर लिया है । सार्वजनिक साहस को विनिवेश (Disinvestment) करने के लिए विशेष तौर पर मंत्रियों को नियुक्त किया गया है । वर्तमान समय में सार्वजनिक साहस बड़े पैमाने पर नुकसान (Loss) कर रहे हैं । जिससे अब यह माना जाता हैं कि सार्वजनिक साहस को भी लाभ का उद्देश्य रखना पड़ेगा । धन्धे को टिकाए रखने, विकसित करने व संशोधन हेतु लाभ को अनिवार्य रूप से स्वीकार करना होगा । यदि सार्वजनिक साहस नुकसान करते हैं तो जो नुकसान होता है उसका समग्र भुगतान आम जनता को करना पड़ता है जो कि योग्य नहीं हैं । सार्वजनिक साहस की संस्थाएँ लोगों के कल्याण के लिए स्थापित की जाती हैं। कल्याण का असर लोगों को सहन करना पड़े ऐसा नहीं होना चाहिए । ऐसी धारणा प्रचलित बनी है ।
दूसरी ओर आम जनता की यह धारणा हैं कि सार्वजनिक साहसों का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए अर्थात् सार्वजनिक साहस को सार्वजनिक साहस ही बनाये रखना चाहिए । सार्वजनिक साहसों को स्पर्धा में टिकाए रखने के लिए अपनी कार्यवाही सुधारनी होगी एवं सेवा में सुधार करना पड़ेगा, तभी सार्वजनिक साहस टिक सकते हैं तथा उसका विकास हो सकता है ।
वर्तमान समय में सार्वजनिक साहस का भावी अंधकारमय ही है। आमजनता, कर्मचारी भी यही चाहते हैं कि सार्वजनिक साहस चालू रहें । अब यह निश्चित है कि सार्वजनिक साहस की संस्थाओं को अच्छी सेवाएँ देनी होंगी व अधिक लोकप्रियता प्राप्त करनी होगी । तभी सार्वजनिक साहस सफल हो पायेंगे ।
सन् 1991 के बाद के वर्षों में आर्थिक नीति में निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण अपनाया गया । जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में परिवर्तन आए । सन् 1950 से 1990 का समयकाल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण रहा है ।