मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति के मुख्य गुणों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
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मॉण्टेसरी पद्धति के गुण
(Merits of Montessori Method)
मॉण्टेसरी पद्धति की सफलता उसके अनेक गुणों पर आधारित है। इन गुणों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित
1. शिशु-शिक्षा के लिए उपयुक्त- मॉण्टेसरी पद्धति का पहला प्रमुख गुण यह है कि यह पद्धति अल्प आयु के शिशुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी और उपयुक्त है। शिशुओं को छोटे-छोटे विभिन्न शिक्षा उपकरणों के साथ खेलने में बहुत आनन्द मिलता है और वस्तुओं के प्रयोग से | मॉण्टेसरी पद्धति के गुण उनकी ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रशिक्षित हो जाती हैं। वे इनसे थोड़ी देर के लिए भी अलग नहीं होना चाहते। इस आयु के बालकों को क्रिया एवं खेल। के द्वारा ज्ञान देना उपयुक्त भी है।
2. स्वशिक्षा का महत्त्व- इस पद्धति में स्वयं शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। इसमें बालक अपना सब काम स्वयं करते हैं और काम करने में रुचि भी लेते हैं। बालक वातावरण का उचित लाभ उठाकर अपने स्वयं के अनुभवों एवं निरीक्षणों के द्वारा सीखते हैं। इस प्रकार स्वशिक्षा आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास के स्वाभाविक विकास में सहायक होती है।
3. वैज्ञानिक पद्धति- यह शिक्षण-पद्धति वैज्ञानिक है, क्योंकि बालक की वैयक्तिकता को यह अनुभव और परीक्षण पर बल देती है। इसमें बालक पूर्णरूप से महत्त्व क्रियाशील रहता है। अपने अनुभवों के आधार पर वह प्रयत्न और भूल – वैयक्तिक विभिन्नता का महत्त्व के सिद्धान्त पर मूल ज्ञान प्राप्त करता है। एडम्स (Adams) के शब्दों में, “मॉण्टेसरी ने अपनी पद्धति में दूसरे विद्यालयों की विधियों से मित्र के रूप में भिन्न एक नई वैज्ञानिक विधि प्रदान की है। उनकी पद्धति का आधार के अनुशासन की समस्या का बालक द्वारा स्वतन्त्रतापूर्वक निरीक्षण एवं परीक्षण है।’
4. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान पर आधारित- यह पद्धति मनोवैज्ञानिक है, क्योंकि इसमें मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, बालकों की योग्यता, अनुभव, शक्ति आदि के आधार पर व्यावहारिक ढंग से शिक्षा दी जाती है। इसमें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के स्वरूपों, निष्कर्षों और सिद्धान्तों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की तरह इसमें भी बालक को विभिन्न यन्त्र और उपकरण प्रदान किए गए हैं। इन उपकरणों से खेलते हुए ही बालक अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर प्राप्त करते हैं।
5. ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण- मॉण्टेसरी ने बालकों की शिक्षा में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल देकर शिक्षा जगत् में एक नई चेतना प्रस्तुत की है। इससे पूर्व की शिक्षा-प्रणालियों में ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा का पूर्णतया अभाव था। इस कमी को पूरा करने का श्रेय मॉण्टेसरी को ही है। मॉण्टेसरी ने ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण द्वारा मन्द तथा हीनबुद्धि बालकों को भी साधारण स्तर पर ला दिया है। लगभग सभी शिक्षाशास्त्री ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा से सहमत हैं। उनका कहना है कि जब तक ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा उचित रूप से न होगी, बालक ज्ञान ग्रहण करने में असमर्थ होंगे।
6. व्यावहारिकता तथा सामाजिकता के गुणों का विकास- मॉण्टेसरी पद्धति में प्रायोगिक कार्यों का सामाजिक महत्त्व है। व्यावहारिक क्रियाओं द्वारा बालकों में व्यावहारिकता तथा सामाजिकता के गुणों का विकास किया जाता है। इस पद्धति वाले विद्यालयों में बालक को सामाजिक जीवन व्यतीत करने के अवसर मिलते हैं, इसलिए इनमें बालक को ऐसा वातावरण मिलता है कि उसके अन्दर सामाजिकता तथा व्यावहारिकता के गुणों का विकास किया जा सके।
7. भाषा-शिक्षण की उत्तम विधिं- मॉण्टेसरी पद्धति में भाषा-शिक्षण की बड़ी उत्तम विधि को अपनाया गया है। लिखना, पढ़ना तथा अंकगणित बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से सिखाया जाता है। लिखने व पढ़ने के लिए जो अभ्यास मॉण्टेसरी ने बताए हैं, वे क्रमानुसार एवं एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। इस पद्धति में लेखन क्रिया के द्वारा बालक की मांसपेशियों पर उचित ध्यान दिया जाता है। लिखने और पढ़ने का अभ्यास साथ-साथ किया जाता है, इसलिए बालके बिना सिखाए पढ़ना सीख जाते हैं।
8. बालक की वैयक्तिकता का महत्त्व- मॉण्टेसरी पद्धति में बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों, इच्छाओं व स्वभाव का सदैव ध्यान रखा जाता है। इससे बालक के व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास होता है। बालक विभिन्न शिक्षा उपकरणों से काम करते हुए अपने आपको स्वतन्त्र अनुभव करता है और अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास करता है। मॉण्टेसरी पद्धति के इस गुण की प्रशंसा करते हुए रस्क (Rusk) ने लिखा है, इस पद्धति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता निर्देशन में वैयक्तिकता का स्थान है।”
9. वैयक्तिक विभिन्नता का महत्त्व- इस पद्धति में बालक के व्यक्तित्व को स्वतन्त्र एवं पूर्ण विकास होता है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता का विशेष ध्यान रखा जाता है और हस्तक्षेप के बिना स्वतन्त्र एवं आदर्श वातावरण में बालकों को रखा जाता है। इस पद्धति में बालकों को उनकी बुद्धिलब्धि, रुचियों, इच्छाओं एवं प्रवृत्तियों के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें प्रत्येक बालक अपनी क्षमता के अनुसार ज्ञान प्राप्त करता है, जोकि सामूहिक शिक्षा में सम्भव नहीं है।
10. शिक्षक का स्थान पथ- प्रदर्शक व मित्र के रूप में इस पद्धति में शिक्षक बालक का सच्चा निर्देशक, मित्र, निरीक्षक, सहायक और पथ-प्रदर्शक होता है न कि आदेशक या अधिकारी। वह बालकों को कार्य करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करता है तथा कठिनाई आने पर उनकी सहायता भी करता है। मॉण्टेसरी शिक्षक बाल-मनोविज्ञान, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान तथा मानवीय गुणों से युक्त होता है।
11. अनुशासन की समस्या का निराकरण- मॉण्टेसरी ने बाह्य अनुशासन का विरोध किया है और वास्तविक आन्तरिक अनुशासन स्थापित करने के नियमों को बताया है। इस पद्धति में कार्य में व्यस्त रहने के कारण बालकों को अनुशासन भंग करने का अवसर नहीं मिलता, जिसके फलस्वरूप उन्हें आत्म-अनुशासन की प्रेरणा मिलती है।