काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ कविता के बहाने।
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी हँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पलटा
तोड़ा मरोड़ा।
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने।
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
कठिन-शब्दार्थ-बात = कथ्य, संदेश। सीधी = सरल। चक्कर = उलझन, इच्छा। टेढ़ी फंस गई = उलझ गई, अस्पष्ट होती गई। . उसे पाने = बात को स्पष्ट करने। उलट-पलटी = बदला। तोड़ा-मरोड़ा = नए-नए ढंग से कहना चाहा। घुमाया-फिराया = बदल-बदल कर देखा। बने = स्पष्ट हो जाय। बाहर आए = भाषा की क्लिष्टता से मुक्त हो जाए। पेचीदा = पेंच के समान घुमावदार, अस्पष्ट।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। कवि इस अंश में उन रचनाकारों पर मधुर व्यंग्य कर रहा है, जो अपनी कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया करते हैं।
व्याख्या-कवि कहता है कि वह जो बात पाठकों तक पहुँचाना चाहता था वह बिल्कुल सीधी और सरल थी परन्तु वह उसे प्रभावपूर्ण भाषा में व्यक्त करना चाहता था। भाषा को आकर्षक बनाने पर अधिक ध्यान देने के कारण कथ्य की सरलता ही नष्ट हो गई। वह अस्पष्ट होती चली गई। कवि ने बात की सरलता को नष्ट होने से बचाने के लिए भाषा में संशोधन किया, शब्दों को बदला और वाक्य रचना में फेर-बदल किया। उसने प्रयास किया कि बात की सरलता बनी रहे तथा भाषा की क्लिष्टता और दिखावटी स्वरूप से छुटकारा मिले परन्तु इससे बात व भाषा और अधिक उलझती चली गई।
विशेष-
(i) कवि का कहना है कि भाषा की सजावट पर अधिक बल देने से कथ्य (भाव या विचार) का संदेश और सहजता अस्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार, काव्य-रचना का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
(ii) सहज सरल भाषा के प्रयोग द्वारा भी कथन के भावों और विचारों को प्रभावशाली ढंग से प्रकाशित किया जा सकता है। इसके लिए प्रतिभा की आवश्यकता होती है, कारीगरी की नहीं
(iii) कवि ने आम भाषा का प्रयोग करते हुए भी एक गहरा संदेश सफलता से प्रस्तुत किया है।
(iv) भाषा के चक्कर में’, ‘टेढ़ी हँसना’ तथा ‘पेचीदा होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से कवि ने कथ्य को प्रभावशाली बनाया है।
(v) ‘उलट-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ में अनुप्रास, ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।