भारतीय संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
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भारतीय संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया
सरकार के तीन अंगों में संसद विधि-निर्माण सम्बन्धी दायित्वों को पूर्ण करती है। विधायी क्षेत्र में संसद को सर्वोच्च शक्ति प्रदान की गयी है। संसद द्वारा निर्मित कानून एक विशेष प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात् विधि का रूप धारण करते हैं। इस सम्बन्ध में साधारण विधेयकों व वित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में पृथक्-पृथक् प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। विधि-निर्माण सम्बन्धी सभी विधेयक संसद के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते हैं। तत्पश्चात् प्रत्येक विधेयक निम्नलिखित तीन वाचनों से होकर गुजरता है –
⦁ प्रथम वाचन – प्रथम वाचन का आशय गजट में प्रकाशित विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से होता है।
⦁ द्वितीय वाचन – द्वितीय वाचन के अन्तर्गत गजट के सिद्धान्तों व उपबन्धों पर संसद द्वारा गहन विचार-विमर्श किया जाता है।
⦁ तृतीय वाचन – तृतीय वाचन, जो विधेयक पर होने वाला अन्तिम व निर्णायक वाचन होता है, में विधेयक को स्वीकार करने हेतु निर्णय लिया जाता है।
विधेयकों के प्रकार
विधेयकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
⦁ सरकारी विधेयक – इस प्रकार के विधेयकों के अन्तर्गत साधारण व वित्तीय दो प्रकार के विधेयक आते हैं तथा इन्हें किसी मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
⦁ गैर-सरकारी विधेयक – ऐसे साधारण विधेयक, जिन्हें मंत्रियों के अतिरिक्त राज्य विधान मण्डल के अन्य सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है, गैर-सरकारी विधेयक कहलाते हैं।
साधारण विधेयक
साधारण विधेयक मंत्रियों अथवा संसद के किसी सदस्य के द्वारा सम्बन्धित सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। किसी भी प्रस्तावित साधारण विधेयक को विधि का रूप धारण करने से पूर्व अग्रलिखित प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है –
(1) प्रथम वाचन – साधारण विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक माह पूर्व सूचना देनी पड़ती है। मंत्री द्वारा विधेयक के प्रस्तुतीकरण करने की तिथि अध्यक्ष द्वारा निश्चित की जाती है। निश्चित तिथि पर अध्यक्ष मंत्री को बुलाता है तथा मंत्री विधेयक के सम्बन्ध में समस्त जानकारी सदन के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस वाचन के अन्तर्गत विधेयक पर किसी प्रकार का कोई वाद-विवाद नहीं होता, अपितु केवल यह निर्णय किया जाता है कि विधेयक पर आगे की कार्यवाही की जाए या नहीं। सदन में स्वीकृत हो जाने पर विधेयक पर आगे की कार्यवाही की जाती है। विधेयक को प्रस्तुत करने व उसे विचारार्थ आगे प्रेषित करने की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को प्रथम वाचन कहा जाता है।
(2) द्वितीय वाचन – प्रथम वाचन के अन्तर्गत प्रस्ताव के विचारार्थ स्वीकार होने के पश्चात् विधेयक की एक-एक प्रति सदन के सदस्यों में बाँट दी जाती है। साधारणतया प्रथम वाचन में प्रस्तुतीकरण के दो दिन पश्चात् विधेयक पर द्वितीय वाचन प्रारम्भ होता है जिसमें विधेयक के मूल सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है। कुछ विशेष विधेयकों के अतिरिक्त शेष सभी विधेयक विचारार्थ प्रवर समिति को सौंप दिये जाते हैं।
प्रवर समिति – गहन विचार-विमर्श हेतु सदन द्वारा एक प्रवर समिति की नियुक्ति की जाती है, जो सदन के कुछ सदस्यों का एक संगठन होता है। प्रवर समिति में विधेयक के प्रत्येक पक्ष पर विचार करने के पश्चात् विधेयक से सम्बन्धित रिपोर्ट सदन को प्रस्तुत की जाती है। समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट सभापति के द्वारा अनुमोदित होती है।
प्रतिवेदन स्तर – प्रवर समिति द्वारा प्रेषित प्रतिवेदन पर सदन द्वारा गहन विचार-विमर्श किया जाता है। इस स्तर पर विधेयक को या तो उसी रूप में स्वीकार कर लिया जाता है जिस रूप में उसे प्रवर समिति सदन को प्रेषित करती है या फिर सदन द्वारा उसमें आवश्यक संशोधन किये जा सकते हैं। इस प्रकार द्वितीय वाचन में विधेयक के प्रत्येक पक्ष पर विचार करने तथा उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने के पश्चात् द्वितीय वाचन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।
(3) तृतीय वाचन – प्रवर समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् विधेयक के तृतीय वाचन की तिथि निश्चित कर दी जाती है। यह वाचन विधेयक को अन्तिम चरण होता है। इस वाचने में प्रस्तावक द्वारा विधेयक को पारित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। इस वाचन में विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर बहस कर उसकी भाषा को अधिक-से-अधिक स्पष्ट व सरल बनाने का प्रयत्न किया जाता है। वास्तव में, विधेयक पर तृतीय वाचन की अवस्था मात्र औपचारिकता पूर्ण करने की होती है। इस अवस्था में विधेयक को रद्द करने की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं।
दूसरा सदन – प्रथम सदन में पारित हो जाने के पश्चात् विधेयक द्वितीय सदन को प्रेषित कर दिया जाता है। यदि द्वितीय सदन भी विधेयक को अपने बहुमत से पास कर देता है तो विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है, परन्तु यदि द्वितीय सदन द्वारा विधेयक को अस्वीकार कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति संसद की संयुक्त बैठक बुलाकर बहुमत से विवाद का समाधान करता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति – दोनों सदनों द्वारा बहुमत से पास हो जाने के पश्चात् विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु प्रस्तुत किया जाता है। यदि राष्ट्रपति विधेयक पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर देता है तो विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है, परन्तु यदि राष्ट्रपति विधेयक के सम्बन्ध में संशोधन हेतु कोई सुझाव देकर विधेयक को वापस भेज देता है तो ऐसी स्थिति में संसद विधेयक पर पुनर्विचार करती है। यदि पुनः संसद द्वारा विधेयक पारित कर दिया जाता है। तो विधेयक पर राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है।
इस प्रकार कोई भी अवित्तीय विधेयक अन्ततः कानून का रूप धारण कर लेता है।
वित्त विधेयक
वित्त विधेयक वंह हे जिसका सम्बन्ध राजस्व अथवा व्यय से होता है। संविधान द्वारा वित्त विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया को साधारण विधेयकों से पृथक् रखा गया है। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार वित्त विधेयकों को राष्ट्रपति की अनुमति से केवल लोकसभा में ही प्रस्तावित किया जा सकता है तथा किसी भी विधेयक के सम्बन्ध में यह विवाद उत्पन्न होने पर कि वह वित्त विधेयक है अथवा नहीं, निर्णय लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लिया जाता है। लोकसभा में प्रस्तावित धन विधेयक के लोकसभा द्वारा पास किये जाने के पश्चात् विधेयक राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है। इस सम्बन्ध में राज्यसभा को प्राप्त शक्तियाँ अत्यन्त सीमित हैं। राज्यसभा किसी भी धन विधेयक को अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने हेतु केवल 14 दिन तक रोक सकती है। 14 दिन की समयावधि के अन्दर या तो वह इस विधेयक के सम्बन्ध में संशोधन-सम्बन्धी कुछ सुझाव देकर लोकसभा को प्रेषित कर देती है अन्यथा 14 दिन के पश्चात् वित्त विधेयक राज्यसभा की स्वीकृति के बिना भी पारित समझा जाता है। धन विधेयक पर दिये जाने वाले राज्यसभा के परामर्शों को स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। दोनों सदनों द्वारा बहुमत से पारित होने के पश्चात् विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून का रूप धारण कर लेता है।
वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में कुछ आवश्यक तथ्य निम्नलिखित हैं –
⦁ धन विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।
⦁ धन विधेयकों को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को नहीं सौंपा जाता।
⦁ धन विधेयकों के सम्बन्ध में एक विशेष तथ्य यह है कि साधारण विधेयकों की भाँति इन विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए सदन को नहीं लौटाया जा सकता।