उत्परिवर्तन किसे कहते हैं? उत्परिवर्तन सिद्धांत के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये|
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डी-व्रीज (1901) ने इवनिंग प्रिमरोज जाती के पौधों पर परीक्षणों के पस्चात ज्ञात किया की कुछ पौधे अकस्मात अपनी जाती से बिलकुल भिन्न हो जाते हैं| यही नहीं, विभिन्न लक्षण वंशागत होकर एक-पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते रहते हैं और नयी जाती का परिवर्तनों की क्रिया को डी-व्रीज ने उत्परिवर्तन की संज्ञा दी एवं उत्परिवर्तनवाद का सिद्धांत दिया|
आधुनिक से यह भी पात चल चूका हैं की जीवों में उत्परिवर्तन उनकी जनन कोशिकाओं में स्थित गुणसूत्रों एवं जीन्स की व्यवस्था में परिवर्तन के कारण होता हैं|
डी-व्रीज के उत्परिवर्तन सिद्धांत के तथ्य निम्नलिखित हैं-
1. प्रकृतिक रूप से जनन करने वाली जातियों या समष्टियों में समय -समय पर उत्परिवर्तन विकसित होते हैं| उत्परिवर्ती जीव (Mutant organism) जनक जीवों से भिन्न होते हैं|
2. उत्परिवर्तन वंशगत होते हैं तथा इनसे नयी जातीयों का विकास होता हैं|
3. उत्परिवर्तन दीर्घ एवं आकस्मित होते हैं|
4. ये किसी भी दिशा में हो सकते हैं| अतः ये लाभप्रद भी हो सकते हैं और हानिकारक भी|
5.उत्परिवर्तनों पर प्राकृतिक वरन का प्रभाव पड़ता हैं| लाभप्रद उत्परिवर्तन जीवों के अंदर संचित होते हैं|