‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक अथवा प्रधान पात्र लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक कौन है ? उसकी चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
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‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताओं; सौन्दर्य शील और शक्ति का वर्णन कीजिए।
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“तुमूल’ खण्डकाव्य के नायक और प्रतिनायक के नाम बताइए तथा उनके चरित्र की दोदो विशेषताएँ भी लिखिए। ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
या
‘तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
वीर रस के प्रसिद्ध कवि श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक लक्ष्मण को माना जा सकता है। प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है। कवि ने लक्ष्मण के तेजस्वी चरित्र-व्यक्तित्व को अपने काव्य का केन्द्रबिन्दु बनाया है।
इस खण्डकाव्य से लक्ष्मण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं|
(1) नायक-लक्ष्मण ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक हैं। वे राम के छोटे भाई एवं रघुकुल के प्रदीप हैं। उनमें नायकोचित वीरता, धीरता और उदारता है। वे मेघनाद के ललकारने पर युद्ध करते हैं। यद्यपि पहले वे मेघनाद के शक्ति-प्रहार से मूर्च्छित हो जाते हैं, परन्तु अन्त में विजय उन्हीं की होती है।
(2) अद्वितीय सौन्दर्यशाली-लक्ष्मण दशरथ के पुत्र और राम के छोटे भाई हैं। उनके व्यक्तित्व में तेजस्विता, सहज कोमलता एवं स्वभाव में नम्रता है। उनके अधरों पर सहज मुस्कान खेलती है। मेघनाद भी उन्हें ‘लावण्ययुक्त ब्रह्मचारी’ कहकर सम्बोधित करता है
लावण्यधारी ब्रह्मचारी, आप बुद्धि निधान हैं।
संसार में अत्यन्त वीर, पराक्रमी महान् हैं।
सभी लक्ष्मण के सौन्दर्य को देखते ही रह जाते हैं। वे जब बोलते हैं तो अत्यन्त मधुर तथा कर्णप्रिय संगीत कानों में घोल देते हैं। कवि उनके सौन्दर्य की प्रशंसा इस प्रकार करते हैं-
थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।
(3) अतुलनीय शक्तिसम्पन्न-लक्ष्मण अत्यन्त विनयशील वीर हैं। वे शत्रु के ललकारने पर युद्ध करने से पीछे नहीं हटते। वे केवल शक्तिसम्पन्न ही नहीं हैं, वरन् वीरों के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मेघनाद के सौन्दर्य, शौर्य एवं तेज की प्रशंसा भी की है। उन्होंने संकल्प करके जिससे भी युद्ध किया, उसे युद्ध में परास्त ही किया-
रण ठानकर जिससे भिड़े, उससे विजय पायी सदा।
संग्राम में अपनी ध्वजा, सानन्द फहरायी सदा ॥
जब मेघनाद उनकी बातें सुनकर हँस पड़ता है, तब उनकी क्रोधाग्नि में मानो घी पड़ जाता है। युद्ध में उनके प्रलयंकारी रूप को देखिए-
आकाश को अपने निशित नाराच से भरने लगे।
उस काल देवों के सहित देवेन्द्र भी डरने लगे।
शत्रु के मनोभावों को भली-भाँति पहचानने में लक्ष्मण अत्यन्त कुशल हैं। युद्ध में मेघनाद की गर्वोक्ति को सुनकर वे कहते हैं-
सच है सुधामय भारती से, खल सुधरते हैं नहीं।
क्या क्षीर पीने पर फणी, विष त्याग देते हैं कहीं।
(4) विनम्र और शीलवान्–बाल्यकाल से ही लक्ष्मण दयालु एवं उदार हैं। उनका अन्त:करण भी सरल, शुद्ध तथा कोमल है। वे अपने भाई राम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं। उनके चरित्र में कृत्रिमता नहीं है। वे युद्धभूमि में अपने शत्रु मेघनाद के सौन्दर्य और ओज को देखकर मुग्ध होकर दयार्द्र हो जाते हैं-
आके, आँखों से तुझे देख के तो, इच्छा होती युद्ध की ही नहीं है।
कैसे तेरे साथ में मैं लडूंगा, कैसे बाणों से तुझे मैं हतूंगा ॥
लक्ष्मण के हृदय में कोमलता है। नि:शस्त्र मेघनाद को यज्ञ करते देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है।।
(5) शत्रुओं को परास्त करने वाले–लक्ष्मण अपने पराक्रम से, अपने बाहुबल से और अपने युद्धकौशल से शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। यद्यपि वे यज्ञ-भूमि में नि:शस्त्र मेघनाद का वध करते हैं, परन्तु मेघनाद को मारने की शक्ति भी केवल उन्हीं में थी। राम उनकी पीठ ठोंकते हुए कहते हैं-
मैं जानता था तुम्हीं मार सकते हो मेघनाद को।
(6) मानवीय गुणों के भण्डार-लक्ष्मण के व्यक्तित्व में मानवीय गुण विशेष रूप से भरे पड़े हैं। कवि के शब्दों में-
निशि दिन क्षमा में क्षिति बसी, गम्भीरता में सिन्धु था।
था धीरता में अद्रि, यश में खेलता शरदिन्दु था॥
थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि लक्ष्मण परम शीलवान, विनम्र, पराक्रमी, अतुल शक्तिसम्पन्न एवं अजेय योद्धा थे। वस्तुतः नायक होने के लिए जितने भी गुण किसी व्यक्ति में होने चाहिए, वे सभी गुण लक्ष्मण में मौजूद हैं। वे ‘तुमुल खण्डकाव्य के नायक एवं मानवमात्र के लिए आदर्श हैं।