टूटता-जुड़ता समय-‘भूगोल’ आया,
गोद में मणियाँ समेट ‘खगोल’ आया,
क्या जले बारूद? हिम के प्राण पाये !
क्या मिला? जो प्रलय के सपने में आये।
धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे,
चढ़ा दे स्वातन्त्र्य-प्रभु पर अमर पानी !
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !
टूटता-जुड़ता समय-‘भूगोल’ आया,
गोद में मणियाँ समेट ‘खगोल’ आया,
क्या जले बारूद? हिम के प्राण पाये !
क्या मिला? जो प्रलय के सपने में आये।
धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे,
चढ़ा दे स्वातन्त्र्य-प्रभु पर अमर पानी !
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !
गोद में मणियाँ समेट ‘खगोल’ आया,
क्या जले बारूद? हिम के प्राण पाये !
क्या मिला? जो प्रलय के सपने में आये।
धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे,
चढ़ा दे स्वातन्त्र्य-प्रभु पर अमर पानी !
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !
[भूगोल = भूमण्डल। मणियाँ = ग्रह-नक्षत्र। खगोल = आकाश-मण्डल। हिम के प्राण पाये = ठण्डी .. होकर। स्वातन्त्र्य-प्रभु = स्वतन्त्रतारूपी ईश्वर। ]
प्रसंग-कवि ने युवकों को देश के गौरव की रक्षा के लिए, देश में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के लिए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया है।
व्याख्या-चतुर्वेदी जी कहते हैं कि हे युवको! समय का भूगोल हमेशा एक जैसा नहीं रहा। तुमने जब-जब क्रान्ति की है, तब-तब यह टूटा है और जुड़ा है अर्थात् नये-नये राष्ट्र बने हैं। तुम्हारी क्रान्ति का सत्कार करने के लिए ही यह ब्रह्माण्ड अनेक रंग-बिरंगे तारारूपी मणियों को अपनी गोद में लेकर प्रकट हुआ है। अतः तुम्हारा स्वभाव इतना ओजस्वी होना चाहिए, जिससे कि विश्व का मानचित्र और इतिहास बदला जा सके। हे युवको! तुम्हें चाहिए कि तुम अपने जीवन की जगमगाहट से देश के गौरव को प्रकाशित करो, किन्तु जिनके हृदय बर्फ की तरह ठण्डे पड़ गये हैं, वे उसी प्रकार क्रान्ति नहीं कर सकते, जिस प्रकार कि ठण्डा बारूद नहीं जल सकता। हे युवको! तुम यदि प्रलय की भाँति पराधीनता और अन्याय के प्रति क्रान्ति नहीं कर सकते तो तुम्हारी जवानी व्यर्थ है। तुम चाहो तो पृथ्वी को भी तरबूज की तरह चीर सकते हो। हे देश के युवकों की जवानी! तू यदि देश की आजादी के लिए अपना रक्तरूपी अमर पानी दे दे तो तू अमर हो जाएगी और संसार में तेरा उदाहरण देकर तुझे सराहा जाएगा।
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ कवि का मानना है कि विध्वंस की गोद से ही निर्माण के पुष्प खिलते हैं। और प्रलय के बाद ही नयी सृष्टि का निर्माण होता है।
⦁ युवा-शक्ति के द्वारा ही परिवर्तन लाया जा सकता है; अत: युवाओं को क्रान्ति के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
⦁ भाषा-प्रवाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली।
⦁ शैली–प्रतीकात्मक और उद्बोधनात्मक।
⦁ रस-वीर।
⦁ छन्द-मुक्त-तुकान्त।
⦁ गुणओजः
⦁ शब्दशक्ति–लक्षण एवं व्यंजना।
⦁ अलंकार-अनुप्रास, उपमा एवं रूपक।
⦁ भावसाम्य–कविवर श्यामनारायण पाण्डेय ने भी ऐसे ही भाव व्यक्त किये हैं
उस कालकूट पीने वाले के, नयन याद कर लाल-लाल।।
डग-डंग ब्रह्माण्ड हिला देगा, जिसके ताण्डव का ताल-ताल ।।