‘तौलिये’ एकांकी की रचना का उद्देश्य क्या है?
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उपेन्द्रनाथ अश्क का एकांकी “तौलिये” एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। एकांकीकार ने इसमें जीवन में सफाई और स्वच्छता का महत्त्व बताने के साथ ही उसके वास्तविक स्वरूप पर भी प्रकाश डाला गया है।
मधु सफाई को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानती है। उसका मानना है कि सफाई पर ध्यान न देने वाला मनुष्य पशु से भी गया-बीता है। सफाई के प्रति उसके विचार अतिरंजित हैं। इस मामले में वह कुछ सनकी है। वह चाहती है कि परिवार में कोई व्यक्ति किसी अन्य का तौलिया प्रयोग नहीं करे। प्रत्येक काम जैसे हजामत, हाथ पोंछने, बदन पोंछने आदि के लिए भी एक ही आदमी अलग-अलग तौलिए प्रयोग करे।
उसका पति बसन्त इस सम्बन्ध में उससे सहमत नहीं है। अलग-अलग तौलियों का प्रयोग, रजाई में पैर धोकर बैठना, चाय, पानी आदि पीने के लिए भी डाइनिंग टेबल परे भागना, मित्रों को अलग-अलग कुर्सियों पर बैठाकर बातें करना आदि बसन्त को ठीक नहीं लगता। वह कोई भी तौलिया प्रयोग कर लेता और मधु की झिड़कियाँ सुनता है। शादी से पहले वह अपने मित्रों के साथ रजाई में बैठकर गप्पें लड़ाता तथा चाय पीता था। उसको ऐसा करना स्वाभाविक और सुखद लगता है। वह मधु से कहता है कि सफाई अच्छी बात है किन्तु वह उसको सनक तक पहुँचा देती है इससे उसे चिढ़ है।
‘तौलिये’ एकांकी की रचना यही बताने के लिए की गई है कि सफाई अच्छी आदत है, उसकी सनक ठीक नहीं है। जीवन में स्वाभाविक आचरण ही आनन्ददायक होता है। सफाई पर आवश्यकता और औचित्य से ज्यादा जोर देने से पारिवारिक वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है तथा वह अशान्त हो उठाता है। अशान्ति से परिवार तथा समाज को हानि पहुँचती है। अत: सफाई के नाम पर सनकी होना ठीक नहीं है।