राजेंद्र बाबू की वेश-भूषा के साथ उनके निजी सचिव और सहचर चक्रधर बाबू का स्मरण लेखिका को क्यों हो आया ?
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राजेंद्र बाबू की वेशभूषा तथा अस्त-व्यस्तता से लेखिका को उनके निजी सचिव और सहचर चक्रधर बाबू का स्मरण हो गया था। चक्रधर बाबू तब तक अपने मोज़े तथा जूते नहीं बदलते थे जब तक मोज़ों से पाँचों उँगलियाँ बाहर नहीं निकलने लगती थीं तथा जूतों के तलों में सुराख नहीं हो जाते थे। वे अपने वस्त्र भी उनके जीर्ण-शीर्ण हो जाने तक नहीं बदलते थे। वे राजेंद्र बाबू के पुराने वस्त्रों को पहन कर ही वर्षों उनकी सेवा करते रहे थे।