नोटबन्दी की पृष्ठभूमि में आप किस तरह का ग्राहक बनना पसंद करेंगे? ‘बाजार दर्शन’ के लेखक के पहले मित्र की तरह या दूसरे मित्र की तरह अथवा चूरन वाले भगत जी की तरह? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
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‘बाजार दर्शन’ पाठ में लेखक ने अपने दो तरह के मित्रों का उल्लेख किया है। एक मित्र बाजार जाकर ढेर सारा सामान खरीद लाता है। वह फिजूलखर्ची करता है। इससे उसका घमंड संतुष्ट होता है। उसको अपनी जरूरत की चीजों का सही पता नहीं होता। दूसरा मित्र बाजार जाता है, वहाँ बहुत देर रुकता भी है, परन्तु वहाँ बहुत-सी चीजें देखकर बहुत-सी चीजों को खरीदना चाहता है परन्तु तय नहीं कर पाता कि वह क्या खरीदे। अत: खाली हाथ बाजार से वापस लौट आता है। बाजार जाने वाले तीसरे व्यक्ति चूरन वाले भगत जी हैं भगत जी को चौक बाजार की पंसारी की दुकान से केवल काला नमक तथा जीरा खरीदना होता है। शेष बाजार उनके लिए शून्य के बराबर होता है।
वर्तमान नोटबंदी के कारण बाजार अस्त-व्यस्त हो रहा है। ग्राहकों के पास भी धन नहीं है। बाजार जाकर सामान खरीदना आसान नहीं है। इस परिस्थिति में मैं पहले मित्र की तरह फिजूलखर्ची करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। वैसे भी ज्यादा चीजों का प्रयोग करना मैं सुख-शांति में बाधक मानता हूँ। मैं दूसरे मित्र की तरह भी बनना नहीं चाहता। बाजार में जाकर अनिश्चय में पड़ना तथा कुछ भी न खरीद कर समय नष्ट करना मैं उचित नहीं समझता। मैं चाहूँगा कि भगत जी की तरह अपनी जरूरतों के बारे में जानें तथा उनको सीमित रखें। इस प्रकार मैं केवल उपयोगी चीजें ही खरीदूंगा। ऐसी दशा में नोटबंदी के कारण पास में पैसा न होने की समस्या भी मुझे नहीं सतायेगी।