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Deep Kumer
Deep Kumer
Asked: 3 years ago2022-10-29T00:56:07+05:30 2022-10-29T00:56:07+05:30In: General Awareness

निर्धनता उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों की चर्चा कीजिए।

निर्धनता उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों की चर्चा कीजिए।

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  1. c4583
    2022-11-09T07:32:22+05:30Added an answer about 3 years ago

    निर्धनता उन्मूलन के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय

    भारत में निर्धनता उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है

    पंचवर्षीय योजनाओं में निर्धनता उन्मूलन विकास कार्यक्रम

    सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। इसके बाद ग्रामीण विकास एवं किसानों के हितों के लिए ठोस प्रयास किए गएँ। अनेक राज्यों में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया गया, पंचायती राज व्यवस्था को नया जीवन दिया गया, सामुदायिक विकास कार्यक्रमों का तेजी से विस्तार किया गया तथा गाँवों में विद्युत, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास तथा ग्रामीण औद्योगीकरण सहित अनेक परियोजनाएँ बनाई गईं। प्रथम तीन पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान ग्रामीण विकास के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों को अपनाया गया

    ⦁    सामुदायिक विकास कार्यक्रम, 1952 ई०,
    ⦁    व्यावहारिक पोषाहार कार्यक्रम, 1958 ई०,
    ⦁    पंचायती राज व्यवस्था, 1959 ई०,
    ⦁    सघन कृषि जिला कार्यक्रम, 1960 ई०,
    ⦁    पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम, 1962 ई०,
    ⦁    जनजाति क्षेत्र का विकास कार्यक्रम, 1964 ई०,
    ⦁    सघन कृषि क्षेत्र कायर्चक्रम, 1965 ई०,
    ⦁    उन्नत बीज कार्यक्रम, 1965 ई० तथा
    ⦁     सघन क्षेत्र विकास कार्यक्रम, 1965 ई०

    तीन वार्षिक योजनाओं तथा चौथी एवं पाँचवीं पंचवर्षीय योजनाओं में निम्नलिखित कार्यक्रमों को लागू किया गया
    ⦁    लघु कृषक मास अभिकरण, 1969 ई०,

    ⦁    सीमांत कृषक एवं कृषि श्रमिक अभिकरण, 1969 ई०,

    ⦁    सूखाग्रत त्र कार्यक्रम, 1974-75 ई०,

    ⦁    ग्रामीण निर्माण कार्यक्रम, 1973 ई०,

    ⦁    ग्रामीण रोजगार हेतु क्रैश कार्यक्रम 1971 ई०,

    ⦁    पायलट परियोजना, 1972 ई०,

    ⦁    न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, 1974 ई०,

    ⦁    बीस सूत्रीय कार्यक्रम, 1975 ई०,

    ⦁    काम के बदले अनाज कार्यक्रम 1977 ई०,

    ⦁    अन्त्योदय योजना, 1977 ई०,

    ⦁    मरुभूमि विकास कार्यक्रम, 1977 ई०,

    ⦁    कमाण्ड एरिया विकास कार्यक्रम, 1978 तथा जिला उद्योग केंद्र, 1978 ई० तथा

    ⦁    रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, 1982 ई०।

    वर्ष 1978-79 से 2000 ई० तक की अवधि में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को एक नई दिशा प्राप्त हुई। इस अवधि में ग्रामीण विकास हेतु प्रमुख रूप से निम्नलिखित कार्यकम्रम आयोजित किए गए-

    ⦁    एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम,

    ⦁    ट्राइसेम कार्यक्रम,

    ⦁    राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम,

    ⦁    राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम,

    ⦁    विशेष पशुधन विकास कार्यक्रम,

    ⦁    ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम,

    ⦁    जवाहर रोजगार योजना,

    ⦁    आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग हेतु नई स्वरोजगार योजना,

    ⦁    नेहरू रोजगार योजना,

    ⦁    अकोलग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम,

    ⦁    रोजगार गारण्टी कार्यक्रम तथा

    ⦁    मजदूरी रोजगार कार्यक्रम आदि।
    ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं; समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम कार्यक्रम, ग्रामीण महिला एवं बाल विकास, ट्राइसेम, गंगा विकास योजना, दस लाख कुआँ योजना, ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजार पूर्ति योजना; को मिलाकर 1 अप्रैल, 1998 ई० से स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना आरम्भ की गई। ‘जवाहर रोजगार योजना’ को ‘ग्राम समृद्धि योजना में बदल दिया गया और इसका विकास क्षेत्र भी बढ़ाया गया। इन्दिरा आवास योजना की जगह समग्र आवास योजना प्रारम्भ की गई।

    वर्ष 2000 के बाद की अवधि- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जनवरी 2001 ई० में सूखा प्रभावित राज्यों के ग्रामीण इलाकों में काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम शुरू किया। नौकरी छूट जाने के कारण प्रभावित कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 10 अक्टूबर, 2001 ई० को ‘आश्रय बीमा योजना शुरू की गई। 2002 ई० में ‘बीमा ग्राम योजना चालू की गई। 27 जनवरी, 2003 ई० को ‘हरियाली परियोजना का शुभारम्भ किया गया। 14 नवम्बर, 2004 ई० को प्रधनमंत्री ने काम के बदले अनाज कार्यक्रम का शुभारम्भ आन्ध्र प्रदेश के रंगा रेड्डी जिले में गाँव अलूर में किया। बजट 2005-06 के प्रस्तावों में इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण गारण्टी रोजगार योजना में रूपांतरित करने का प्रावधान किया। गया।कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं को संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
    1. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (Prime Minister Rural Road Programme PMRRP)
    यह योजना 25 दिसम्बर, 2000 ई० को शुरू हुई। देश के सभी गाँवों को पक्के सड़क मार्गों से जोड़ने की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 500 से अधिक जनसंख्या वाले सभी गाँवों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ दिया जाएगा। इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य चल रहा है।
    2. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल हेतु प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (Prime Minister Gramodaya Yojana-PMGY)-इस कार्यक्रम के तहत राज्यों को धन जारी करने के लिए पेयजलापूर्ति विभाग, भारत सरकार को शीर्षस्थ विभाग है। ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम का क्रियान्वयन मिशन द्वारा 1999 ई० में जारी हुआ और अब तक दिए गए निर्देशों के मुताबिक होगा। इस योजना का उद्देश्य उन ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की व्यवस्था करना है, जहाँ पेयजल उपलब्ध नहीं है या आंशिक रूप से उपलब्ध है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल से लौह तत्त्वों, आर्सेनिक तथा फ्लुओराइड जैसे हानिकारक तत्त्वों को दूर करना हैं।
    3. ग्रामीण पेयजल आपूर्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधाएँ ‘राज्य स्कन्ध न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत प्रदान की जाती हैं। केन्द्र सरकार के प्रशासन हेतु राष्ट्रीय एजेण्डे में अगले पाँच वर्षों में सभी के लिए सुरक्षित पेयजल के प्रावधान की घोषणा की गई है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु बनाई गई रणनीति में निम्नलिखित मुद्दे सम्मिलित हैं– बचे हुए ग्रामीण क्षेत्रों तथा ऐसे क्षेत्रों को सुरक्षित पेयजल व्यवस्था शीघ्र प्रदान करना, जहाँ केवल कुछ ही लोगों को पेयजल की सुविधा प्राप्त है, हानिकारक तत्त्वों से प्रभावित क्षेत्रों में जल की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं से लड़ना तथा जल गुणवत्ता प्रबन्धन व निगरानी व्यवस्थाओं को संस्थागत करना, तंत्र एवं स्रोत दोनों की निरंतरता को बढ़ाना तथा पेयजल सुविधासम्पन्न ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करना।
    4. केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (Central Rural Sanitation Programme-CRSP)- ग्रामीण स्वच्छता राज्य का विषय होने के कारण ग्रामीण स्वच्छता कार्यकम्रम राज्य क्षेत्र के न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत 1986 ई० में हुई। 1 अप्रैल, 1999 ई० को इस कार्यक्रम की पुनर्संरचना की गई। पुनर्गठित केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को चरणबद्ध क्रम में निर्धनता निर्धारक तथ्य पर मुख्यत: आधारित प्रदेशवारे निधियों के आबंटन के सिद्धांत से हटाकर माँग प्रेरित’ पहले की ओर केन्द्रित किया जा रहा है। कार्यक्रम में उच्च अनुदान के स्थान पर निम्न अनुदान की ओर झुकाव रहेगा।
    5. इन्दिरा आवास योजना (Indira Avas Yojana-IAY)- इन्दिरा आवास योजना वर्ष 1985-86 में RLEGP में एक उपभोक्ता कार्यक्रम के रूप में प्रारम्भ की गई थी, जिस द्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के सबसे निर्धन लोगों तथा मुक्त ए गए बँधुआ श्रमिकों के लिए मकानों का निर्माण कराना है, जो उन्हें नि:शुल्क (Free of Cost) उपलब्ध कराए जाते हैं। वर्ष 1989-90 ई० में RLEGP के जवाहर रोजगार योजना में विलय के बाद इस योजना को भी जवाहर रोज़गार योजना (JRY) का अंग बना दिया गया था, किंतु 1996 ई० में इसे JRY से पृथक् कर एक स्वतंत्र योजना का रूप दे दिया गया। इस प्रकार 1 जनवरी, 1996 ई० से यह एक स्वतंत्र योजना के रूप में लागू है। इस योजना का लक्ष्य अत्यंत निर्धन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के, मुक्त बँधुआ मजदूरों और गैर-अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में आने वाले ग्रामीण गरीबों को आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद देना है। जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है।
    6. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (Prime Minister Gramodaya Yojana- PMGY)-इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए आवासों की कमी को दूर करना तथा इन क्षेत्रों के पर्यावरण के स्वस्थ विकास में सहायता देना है। प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना की रूपरेखा, इन्दिरा आवास योजना पर आधारित है।
    ग्रामीण आवासों के लिए ऋण एवं अनुदान की योजना (Credit Cum Subsidy Plan for Rural Housing)-यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू की गई थी। इस योजना में प्रत्येक पात्र परिवार को ३ 10,000 का अनुदारन तथा प्रति परिवार र 40,000 तक का ऋण दिया जाता है। स्वच्छ शौचालय और धुआँरहित चूल्हे ग्रामीणों के आवास के अभिन्न अंग बनाए गए हैं। यह योजना ऐसे ग्रामीण परिवारों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जिनकी वार्षिक आमदनी १ 32,000 तक है। योजना के लिए धनराशि का बँटवारा केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 के अनुपात में होता है।
    7. समग्र आवास योजना (Samagra Avas Yojana-SAY)-यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० को शुरू हुई। इसका मुख्य उद्देश्य आवास, स्वच्छता, पेयजल की समग्रे व्यवस्था तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पूर्ण पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के जीवन में गुणवत्तापूर्ण सुधार लाना है।।
    8. ग्रामीण आवास और पर्यावरण विकास का अभिनव कार्यक्रम (New Programme for Rural Housing and Environment Development-PRHED)—यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू हुई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन व प्रमाणित आवास प्रौद्योगिकियों, डिजाइनों और ग्रामीण सामग्रियों को बढ़ावा देना व उन्हे प्रचारित करना है।
    9. ग्रामीण निर्माण केन्द्र (Rural Construction Centre-RCC)—इस कार्यक्रम की शुरुआत केरल में 1995 ई० में हुई। इसका उद्देश्य प्रशिक्षण तथा किफायती व पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री के उत्पादन के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना, सूचना-प्रसार तथा कुशलता बढ़ाना है। ग्रामीण निर्माण केन्द्रों को प्रयोगशाला से जमीन तक प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में सम्मिलित किया जा रहा है। ग्रामीण निर्माण केन्द्र राज्य सरकार, ग्रामीण विकास एजेन्सियों, निजी उद्यमियों, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं आदि के द्वारा स्थापित किया जा सकता है। ग्रामीण निर्माण केन्द्र की स्थापना हेतु एकमुश्त र 15 लाख की सहायता प्रदान की जा सकती है। राष्ट्रीय आवास और पर्यावरण के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for National Housing and Environment)-इस मिशन की स्थापना ग्रामीण आवास क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई।

    10. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarna Jayanti Gram Swa-Rojgar Yojana-sGSY)- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना गाँवों में रहने वाले निर्धनों के लिए स्वरोजगार की एक अकेली योजना है, जो 1 अप्रैल, 1999 ई० को प्रारम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में कुटीर उद्योगों की स्थापना करना है। इस योजना में सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलाएँगे, लाभार्थी नहीं। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक सहायता प्राप्त परिवार को धन उपलब्ध होने पर तीन वर्ष में निर्धनता-रेखा से ऊपर उठाना है। आगामी पाँच वर्षों में प्रत्येक विकास खण्ड में रहने वाले निर्धन ग्रामीणों में से 30% को इस योजना के दायरे में लाने का प्रस्ताव है। विकास खण्ड स्तर पर प्रमुख गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा किया जाएगा। यह योजना एक ऋण एवं अनुदान कार्यक्रम है। ऋण प्रमुख तत्त्व होगा, जबकि अनुदान केवल समर्थनकारी तत्त्व। अनुदान परियोजना लागत के 30% की एक समान दर पर होगी, किंतु इसकी अधिकतम सीमा 7,500 होगी। अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए यह सीमा 50% या अधिकतम 10,000 होगी। सिंचाई परियोजनाओं के लिए अनुदान की कोई अधिकतम सीमा नहीं होगी। योजना में दी जाने वाली धनराशि को केन्द्र और राज्य सरकारें 75: 25 के अनुपात में वहन करेंगी।

    11. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (Jawahar Gram Samriddhi Yojana-JGSY)- यह योजना पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है। 1 अप्रैल; 1999 ई० को प्रारम्भ की गई इस योजना का उद्देश्य गाँव में रहने वाले निर्धनों का जीवन-स्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इस योजना को दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़ समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू किया गया है। योजना में खर्च की जाने वाली राशि 75: 25 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकारें वहन करेंगी।
    12. जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी प्रशासन (District Rural Development Agency-DRDA)- प्रशासनिक खर्च के संबंध में विभिन्न कार्यक्रमों में एकरूपता नहीं होने के कारण केन्द्र द्वारा प्रायोजित एक नई जिला ग्रामीण एजेन्सी (DRDA) प्रशासन योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों को सशक्त बनाना तथा इन्हें इनके क्रियान्वयन के लिए अधिक व्यावसायिक बनाना है।
    13. सुनिश्चित रोजगार योजना (Sunishchit Rojgar Yojana-SRY)- वर्ष 1997-98 में इस योजना को देश की सभी पंचायतों में लागू कर दिया गया। इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण गरीबों को भीषण मन्दी के दिनों में श्रम कार्यों द्वारा अतिरिक्त मजदूरी रोजगार अवसरों को प्रदान करना है। यह योजना उन सभी निर्धनों के लिए है। जिनको मजदूरी रोजगार की आवश्यकता है। योजना के अंतर्गत संसाधनों का बंटवारा केन्द्र और राज्य सरकारें क्रमशः 25 : 25 के अनुपात में वहन करेंगी।
    14. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme NSAP)—यह कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० से लागू किया गया। इस कार्यक्रम के तीन निम्नलिखित प्रमुख घटक थे
    ⦁    राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना,

    ⦁    राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना,

    ⦁    राष्ट्रीय प्रसव | लाभ योजना। उपर्युक्त सभी योजनाएँ वृद्धावस्था परिवार के कमाऊ सदस्य की मृत्यु तथा मातृत्व के दौरान सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।
    1. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत निर्धनता रेखा से नीचे वर्ग के 65 वर्ष अथवाउससे अधिक आयु वाले आवेदक को 75 प्रति माह की राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन दिए जाने का प्रावधान है।
    2.राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना के अंतर्गत परिवार के मुख्य आय अर्जक (महिला अथवापुरुष) की सामान्य मृत्यु होने पर (18 वर्ष से अधिक व 65 वर्ष से कम) निर्धन परिवार को 5,000 की एकमुश्त राशि उत्तरजीवी लाभ के रूप में दी जाती है। दुर्घटना से मृत्यु की स्थिति में है 10,000 की सहायता दी जाती है।
    3. राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना के अंतर्गत निर्धन परिवारों की 19 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाओं के लिए पहले दासे बच्चों के जनम पर प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर मातृत्व देखभाल हेतु  500 की वित्तीय सहायता दी जाती है। यह कार्यक्रम 100% केन्द्र पोषित कार्यक्रम है, जो पंचायत/नगरपालिका जैसी स्थानीय संस्थाओं द्वारा क्रियान्वित किया जाता है।
    15. अन्नपूर्णा योजना Annapurna Yojana)- यह योजना निर्धन एवं बेसहारा वयोवृद्ध नागरिकोंको नि:शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मार्च 1991 ई० में प्रारम्भ की गई। 19 मार्च, 1999 ई० को प्रधानमंत्री द्वारा गाजियाबाद जिले के सिखेड़ा गाँव से इस योजना को प्रारम्भ किया गया था। अन्नपूर्णा योजना के तहत पात्र वयोवृद्ध नागरिकों को प्रतिमाह 10 किग्रा अनाज निःशुल्क उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है।
    16. कुटीर ज्योति कार्यक्रम (Kutir Jyoti Programme-KJP)–हरिजन और आदिवासीपरिवारों सहित निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए भारत सरकार ने 1988-89 ई० में ‘कुटीर ज्योति’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती का विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए 400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
    17. लोक कार्यक्रम एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद् (Council for Advancement of People’s Action and Rural Technology : CAPART)-इसका गठन 1 सितम्बर, 1986 को किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण समृद्धि के लिए परियोजनाओं के क्रियान्वयन में स्वैच्छिक कार्य को प्रोत्साहन देना और उनमें मदद करना है। कपार्ट की नौ प्रादेशिक समितियाँ/प्रादेशिक केन्द्र हैं। प्रादेशिक समितियों को अपने-अपने प्रदेशों में स्वयंसेवी संस्थाओं की है 20 लाख तक के परिव्यय वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार प्राप्त है।
    18. एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (Integrated Waste Land Development | Programme–IWLDP)–यह कार्यक्रम वर्ष 1989-90 से चलाया जा रहा है। यह पूर्णतया केन्द्र प्रायोजित कार्यकम्रम है। इस कार्यक्रम से बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करने में भी मदद मिलती है।
    19.निवेश संवर्द्धन योजना (Investment Promotion Plan–IPP)-गैर-वन बंजर भूमि के विकास के लिए संसाधनों को एकत्र करने में निगमित क्षेत्र तथा वित्तीय संस्थानों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1994-95 में निवेश संवर्द्धन योजना शुरू की गई थी। इस योजना के तहत सामान्य वर्ग के लिए केन्द्रीय संवर्द्धन अंशदान/सब्सिडी 25 लाख या कृषि आधारित विकास परियोजना लागत को 25 प्रतिशत, जो भी कम हो, तक सीमित हैं; बशर्ते परियोजना में संवर्द्धक का अंशदान परियोजना लागत के 25 प्रतिशत से कम न हो। लघु कृषकों के लिए अनुदान की सीमा 30 प्रतिशत है तथा सीमांत कृषकों व अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषकों के लिए कृषि-आधारित विकास गतिविधियों की परियोजना लागत का 50 प्रतिशत है।
    20. प्रौद्योगिकी विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम (Technological Development Expansion and Training Programme-TDETP)–वर्ष 1993-94 में बंजर भूमि के सुधार द्वारा खाद्य, ईंधन, लकड़ी, चारा आदि के निरंतर उत्पादन हेतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास के लिए एक केन्द्रीय उपक्रम योजना–प्रौद्योगिकी विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों तथा शासकीय संस्थानों, जिनके पास पर्याप्त संस्थागत ढाँचा तथा संगठनात्मक समर्थन हो, के जरिए लागू किया जा रहा है। निजी कृषकों/निगमित निकायों की बंजर भूमि पर लागू परियोजनाओं के मामले में परियोजना लागत को 60:40 के अनुपात में भू-संसाधन विभाग तथा हितग्राहियों के मध्य बॉटना आवश्यक है।
    21. सूखा सम्भावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought-prone Area Development Programme DADP)-सूखे की सम्भावना वाले चुनिन्दा क्षेत्रों में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम 1973 ई० में प्रारम्भ किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य इन क्षेत्रों में भूमि, जल व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित विकास करके पर्यावरण संतुलन को बहाल करना है। कार्यक्रम हेतु वित्त की व्यवस्था केन्द्र व संबंधित राज्य द्वारा 50: 50 के अनुपात में की जाती है। वर्तमान में यह कार्यक्रम 13 राज्यों के 55 जिलों के 947 ब्लॉकों में चलाया जा रहा है तथा इसके अधीन कुल क्षेत्र 41 लाख हेक्टेयर है।
    22. मरुस्थल विकास कार्यक्रम (Oasis Development Programme-ODP)-मरुभूमि को बढ़ने से रोकने, मरुभूमि में सूखे के प्रभाव को समाप्त करने, प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने व इन क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता तथा जल संसाधनों को बढ़ाने के उद्देश्य से मरुस्थले विकास कार्यक्रम चुने हुए क्षेत्रों में 1977-78 ई० में प्रारम्भ किया गया था। यह कार्यक्रम शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता के आधार पर क्रियान्वित किया जा रहा है।
    23. महात्मामयी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा)- गरीबी को प्रभावी तरीके से दूर करने के लिए मजदूरी मिलने वाले रोजगार कार्यक्रमों को तैयार करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम बनाया। अपने वैधानिक ढाँचे और अधिकार आधारित दृष्टिकोण की वजह से मनरेगा का यह कार्यक्रम बेरोजगारों को रोजगार देने और पहले से चले आ रहे कार्यक्रमों का एक प्रतिमान बन गया है। 7 सितम्बर, 2005 को अधिसूचित मनरेगा कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का गारण्टीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार उपलब्ध कराना है। 2 फरवरी, 2006 से लागू इस अधिनियम के अंतर्गत पहले चरण में 200 जिलों को शामिल किया गया और 2007-08 में इसे बढ़ाकर 130 अतिरिक्त जिले शामिल कर लिए गए। अन्य शेष जिलों को एक अप्रैल 2008 को अधिसूचना जारी करके अधिनियम में शामिल कर लिया गया।

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