नदी जो इस समय नहीं है इस घर में
पर होगी जरूर कहीं न कहीं
किसी चटाई या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई
नदी जो इस समय नहीं है इस घर में
पर होगी जरूर कहीं न कहीं
किसी चटाई या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई
पर होगी जरूर कहीं न कहीं
किसी चटाई या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि नदी की सर्वव्यापकता की ओर संकेत कर रहा है।
व्याख्या-नदी की सर्वव्यापकता की ओर संकेत करता हुआ कवि कहता है कि जो नदी विभिन्न स्थलों के मध्य से अनवरत प्रवाहित होती रहती है वह किसी-न-किसी रूप में हमारे घरों में भी प्रवाहित होती हुई हमें सुख और आनन्द की अनुभूति देती है। इसके बहने की ध्वनि हमें किसी चटाई या फूलदान से भी सुनाई पड़ सकती है और इसको हम मन-ही-मन अनुभव भी कर लेते हैं। आशय यह है कि नदी और व्यक्ति का गहरा और अटूट सम्बन्ध पहले से ही रहा है और आगे भी रहेगा।
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ नदी से अटूट सम्बन्ध का वर्णन करते हुए कहा गया है कि नदी घरों में भी चुपचाप बहती रहती है।
⦁ भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
⦁ शैली–प्रतीकात्मक।
⦁ छन्द ……. अतुकान्त और मुक्त।