‘मुक्ति-दूत’ काव्य के चतुर्थ सर्ग की घटनाओं का सार अपने शब्दों में लिखिए।
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‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का चौथा सर्ग गाँधीजी के कर्मयोग का प्रतीक है। सिद्ध कीजिए।
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‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर चतुर्थ एवं पंचम सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथावस्तु को लिखिए।
चतुर्थ सर्ग में भारत की स्वतन्त्रता के लिए गाँधीजी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलनों का वर्णन है। जलियाँवाला बाग की नृशंस घटना हो जाने पर गाँधीजी ने अगस्त सन् 1920 ई० में देश की जनता को ‘असहयोग आन्दोलन’ के लिए आह्वान किया। लोगों ने सरकारी उपाधियाँ लौटा दीं, विदेशी सामान का बहिष्कार किया। छात्रों ने विद्यालय, वकीलों ने कचहरियाँ और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरियाँ छोड़ दीं। इस आन्दोलन से सरकार महान् संकट और निराशा के भंवर में फँस गयी।
असहयोग आन्दोलन को देखकर अंग्रेजों को निराशा हुई। उन्होंने भारतीयों पर ‘साइमन कमीशन थोप दिया। ‘साइमन कमीशन’ के आने पर गाँधीजी के नेतृत्व में सारे भारत में इसका विरोध हुआ। लाला लाजपत राय, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खान ने गाँधीजी के स्वर में स्वर मिलाकर साइमन कमीशन का विरोध किया। परिणामस्वरूप सरकार हिंसा पर उतर आयी। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर निर्मम लाठी-प्रहार हुआ, जिसके फलस्वरूप देशभर में हिंसक क्रान्ति फैल गयी। गाँधीजी देशवासियों को समझा-बुझाकर मुश्किल से अहिंसा के मार्ग पर ला सके।
गाँधीजी ने 79 व्यक्तियों को साथ लेकर नमक कानून तोड़ने के लिए डाण्डी की पैदल यात्रा की। अंग्रेजों ने गाँधीजी को बन्दी बनाया तो प्रतिक्रियास्वरूप देशभर में सत्याग्रह छिड़ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ में अंग्रेजों ने समझौता करना चाहा, परन्तु गाँधीजी की आजादी की माँग न मानने के कारण समझौता , भंग हो गया। नमक का कानून तोड़ने, डाण्डी यात्रा, सविनय अवज्ञा आन्दोलन व साइमन कमीशन के विरोध में गाँधीजी के अटूट साहस और नायकत्व को देखकर अंग्रेजी सरकार चौंक गयी। वह स्वयं अपने द्वारा किये गये अत्याचारों के प्रति चिन्तित थी।
बापू की एक ललकार पर देश भर में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन फैल गया। सब जगह एक ही स्वर सुनाई पड़ता था-‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’। स्थान-स्थान पर सभाएँ की गयीं, विदेशी वस्त्रों की होलियाँ जलायी गयीं, पुल तोड़ दिये गये, रेलवे लाइनें उखाड़ दी गयीं, थानों में आग लगा दी गयी, बैंक लुटने लगे, अंग्रेजों को शासन करना दूभर हो गया। उन्होंने दमन-चक्र चलाया तो गाँधीजी ने 21 दिन का अनशन’ कर दिया। इन्हीं दिनों कारागार से गाँधीजी की पत्नी की मृत्यु हो गयी। आजीवन पग-पग पर साथ देने वाली जीवन-संगिनी के वियोग से बापू की वेदना का समुद्र उमड़ पड़ा। गाँधीजी की आँखों से आँसू बहने लगे। वे इस अप्रत्याशित आघात से व्याकुल अवश्य हुए, परन्तु पत्नी के स्वर्गवास ने अंग्रेजों के विरुद्ध उनके मनोबल को और अधिक दृढ़ कर दिया। कवि इसका चित्रण करता हुआ कहता है–
बूढ़े बापू की आहों से, कारा की गूंजी दीवारें।
बन अबाबील चीत्कार उठीं, थर्राई ऊँची मीनारें।