मानव-जीवन में शिक्षा की आवश्यकता को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
शिक्षा की आवश्यकता (Need of Education)
मानव-जीवन में शिक्षा की आवश्यकता का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।
1. अधिगम या सीखने के लिए प्रकृति ने पशु- पक्षियों के बच्चों को ऐसी शक्ति प्रदान की है कि वे बिना सिखाये अपनी-अपनी क्रियाएँ कर सकते हैं, किन्तु इसके शिक्षा की आवश्यकता। विपरीत मानव-शिशु जन्म से ही असहाय होता है और बिना सिखाये , अधिगम या सीखने के लिए कोई भी कार्य नहीं कर पाता। शिक्षा की प्रक्रिया के अन्तर्गत वह सामंजस्य के लिए अधिगम (सीखना) करता है तथा चलने-फिरने, बोलने और ज्ञानवर्धन के लिए। लिखने-पढ़ने जैसी क्रियाएँ करने लगता है। अतः अधिगम के लिए। शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है।
2. सामंजस्य के लिए- सभी जीवधारी अपने वातावरण के ॐ श्रेष्ठ नागरिकता के विकास के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं। मनुष्य भी जन्म से लगातार लिए। वातावरण के साथ सामंजस्य बनाने की चेष्टा करता है। वस्तुतः सामंजस्य तथा अनुकूलन में ही उसके जीवन का अस्तित्व निहित है। लिए जो मनुष्य जितना अधिक अपने वातावरण के साथ सामंजस्य बना नै सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास लेता है, वह जीवन में उतना ही अधिक सफल होता है। वातावरण के के लिए साथ सामंजस्य स्थापित करने के इस कार्य में शिक्षा अत्यधिक जीवन की प्रगति के लिए। सहायक है। अत: हम कह सकते हैं कि सामंजस्य स्थापित करने के लिए शिक्षा आवश्यक है।
3. ज्ञानवर्धन के लिए- ज्ञानविहीन मनुष्य का जीवन पशु के समान है। ज्ञान पाकर वह पशुता से ऊपर उठकर मनुष्यत्व और फिर देवत्व की ओर बढ़ता है। शिक्षा की उचित पद्धति के माध्यम से मनुष्य को वांछित ज्ञान प्राप्त होता है, जिसके प्रभाव से उसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यावहारिक कार्यों के लिए दिशा मिलती है। उपयोगी एवं सुन्दर जीवन के लिए ज्ञान चाहिए और ज्ञान के लिए शिक्षा आवश्यक है।
4. कार्यक्षमता के विकास के लिए- मनुष्य को अपने जीवन काल में अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए समुचित कार्यक्षमता की आवश्यकता होती है। शिक्षा के माध्यम से मनुष्य में अपनी आवश्यकता तथा परिस्थितियों के अनुकूल कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होती है। प्रतिकूल दशाओं के विरुद्ध सुनियोजित संघर्ष करने तथा उन पर विजय प्राप्त करने हेतु पर्याप्त कार्यक्षमता अर्जित करने की दृष्टि से उचित शिक्षा आवश्यक है।
5. जीविकोपार्जन के लिए- अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में विभिन्न आवश्यकताओं की । पूर्ति के लिए मनुष्यों को धन की जरूरत पड़ती है, जिसके लिए वे उपयुक्त आजीविका की तलाश करते हैं। शिक्षा मनुष्य को किसी निश्चित क्षेत्र में सेवा, व्यवसाय, उद्यम अथवा कारोबार के लिए तैयार करती है तथा उसकी रुचि के अनुसार उपयुक्त आजीविका खोजने हेतु निर्देशन प्रदान करती है। प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता के इस युग में शिक्षा ही आजीविका तथा धनोपार्जन का सर्वोत्तम माध्यम है। अतः स्पष्ट है कि जीविकोपार्जन के लिए भी शिक्षा आवश्यक है।
6. श्रेष्ठ नागरिकता के विकास के लिए- भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है और प्रजातन्त्र की सफलता के लिए देशवासियों में श्रेष्ठ नागरिकता के गुण विद्यमान होने चाहिए। श्रेष्ठ नागरिक में राष्ट्र की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के निरपेक्ष तथा न्यायपूर्ण समाधान की क्षमता होती है, जिसके लिए स्पष्ट विचार, अनुशासन, सहयोग, भ्रातृत्व-भाव, देश-प्रेम, सामाजिक चेतना तथा नैतिक शुद्धता जैसे गुणों की आवश्यकता … होती है। बालकों में श्रेष्ठ नागरिकता के विभिन्न गुणों का विकास केवल शिक्षा द्वारा ही हो सकता है।
7. व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित के लिए- मनुष्य जिन मूल-प्रवृत्तियों के साथ जन्म लेता है, वे उसके व्यवहार को प्रेरित तो करती हैं, किन्तु उन्हें सभ्यता तथा व्यक्तिगत व सामाजिक हित की दृष्टि से उत्तम नहीं कहा जा सकता। शिक्षा इन मूल-प्रवृत्तियों को सुन्दर व स्थायी भावों में बदलकर उन्हें व्यक्ति तथा समाज के लिए उपयोगी बनाती है, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य सुखी, सभ्य, कल्याणकारी एवं सामाजिक जीवन व्यतीत कर पाता है। इस प्रकार मनुष्य का व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित शिक्षा में ही निहित है।
8. सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास के लिए- मानव-जीवन के तीन प्रमुख पक्ष हैं—शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। मनुष्य के व्यक्तित्व को सन्तुलित रूप से विकसित करने के लिए इन तीनों ही पक्षों पर समान रूप में ध्यान देने की जरूरत होती है। शिक्षा ही एक ऐसी सविचार, गतिशील तथा जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मानव व्यक्तित्व का स्वाभाविक, सन्तुलित तथा सर्वांगीण विकास हो सकता है।
9. जीवन की प्रगति के लिए- वर्तमान जीवन अत्यन्त जटिल एवं गतिशील है। आधुनिक विश्व के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रगतिशील जीवन एक अनिवार्य शर्त है और ऐसे जीवन के लिए समाज की संरचना, कार्य-पद्धति तथा समूचे वातावरण का ज्ञान आवश्यक है। शिक्षा के अभाव में हम यह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। इसी कारणवश जॉन डीवी ने कहा है, “शिक्षा जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि बिना शिक्षा के जीवन की प्रगति नहीं हो सकती।
10. शिक्षा ही जीवन है- शिक्षा का क्षेत्र कुछ ही लोगों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को शिक्षा की आवश्यकता होती है अतः शिक्षा सर्वसाधारण के लिए आवश्यक है। जीवन की प्रत्येक अवस्था में शिक्षा को आवश्यक कहा गया है। यही कारण है कि कुछ विचारकों ने जीवन और शिक्षा में कोई भेद नहीं माना है। उनका कहना है, “शिक्षा जीवन है और जीवन शिक्षा है।” वास्तव में शिक्षा, जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।