‘कर्मवीर भरत’ खण्डकोष के प्रथम (आगमन) सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।
या
कर्मवीर भरत के आधार पर संक्षेप में बताइए कि भरत के अयोध्या लौटने पर उन्हें अयोध्या | किस रूप में दिखाई दी ?
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‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। चौदह वर्ष के लिए राम के वन-गमन और दशरथ की मृत्यु के पश्चात् दूत द्वारा भरत को ननिहाल से बुलाये जाने की घटना से कथा का आरम्भ होता है।
दूतों का ननिहाल पहुँचना एवं भरत की शंका–गुरु वशिष्ठ के आदेश से अयोध्या के दूत कैकेयराज के यहाँ पहुँचकर, भरत को गुरु के द्वारा शीघ्र बुलाये जाने का सन्देश देते हैं। दूतों के मुख से शीघ्र बुलाये जाने का गुरु-आदेश सुनकर भरत का मन व्याकुल हो जाता है। उनके मन में बार-बार यह शंका उठती है कि ऐसी क्या आवश्यकता आ पड़ी जो राम-लक्ष्मण के रहते मुझे बुलाया जा रहा है ? भरत दूतों से पुरवासियों, गुरु वशिष्ठ, पिता दशरथ, माता कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा, भाई राम और लक्ष्मण की कुशलक्षेम पूछते हैं। दूतों ने दशरथ-मृत्यु और राम के वन-गमन की बात को छिपाकर सभी का कुशल समाचार सुनाया।
भरत का प्रस्थान–शंकालु और चिन्तित भरत ने अपने मामा से गुरु का आदेश बताकर उनकी अनुमति से अयोध्या-प्रस्थान की तैयारी की। वे पर्वत, नदी और वनों को पार करते हुए सात दिन में अयोध्या के सालवन में पहुँचे। मार्ग में भरत को प्रकृति भी उदास दिखाई देती है। उन्हें उषाकाल में भी सूनापन, हरियाली में भी सूखापन तथा आलोक में भी तम दिखाई दे रहा था।
अयोध्या-प्रवेश नगर में प्रवेश कर अयोध्या के सूनेपन को देखकर भरत का मन व्याकुल हो गया। उन्हें भवन वन्दनवारों से रहित, गलियाँ सूनी और घरों के आँगन बिना बुहारे हुए दिखाई दिये। उन्होंने गायों को व्याकुलता से सँभाते और वायु को साँय-साँय करते हुए कुछ अजीब-सा अनुभव किया।
अयोध्या का सूनापन-भरत ने अयोध्या को वैभवहीन, शंख-ध्वनिविहीन, यज्ञ को धूम से रहित देखा। अयोध्या पर गिद्धों को मँडराते एवं मार्गों को आवागमन से रहित, बाजारों को अस्त-व्यस्त, देवमन्दिरों के द्वार बन्द और भवनों को पताकारहित देखकर भरत के मन में अत्यधिक चिन्ता हुई। उनके बायें अंग फड़कने लगे और हृदय में शंका छा गयी। उदास पुरवासी मौन संकेतों से बातें कर रहे थे। उन्होंने राजद्वार पर द्वारपालों को मौन ठगे-से खड़ा देखा।
राजगृह की दशा-राजगृह में बन्दी-सूत यशोगान नहीं कर रहे थे। उन्हें कोई मन्त्री नहीं दिखाई दिया। मंगल गीत न गाये जाने से राजभवन सोया-सोया-सा लग रहा था। उन्हें पिता दशरथ का कक्ष भी सूना दिखाई दिया। अब उन्हें किसी अनिष्ट की आशंका सताने लगी। चिन्तामग्न भरत, कैकेयी के कक्ष की ओर चले गये।