किस प्रकार से साइबर अपराध को एक प्रमुख सामाजिक समस्या माना जाता है? इन्हें रोकने के उपाय लिखिए।
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साइबर अपराध, अपराध का एक अत्याधुनिक प्रकार है तथा यह वर्तमान अत्याधुनिक समाज में संगणक, इन्टरनेट और संचार की आधुनिक प्रौद्योगिकी के साधनों का प्रयोग करने वालों के द्वारा अपने व्यापारिक व व्यावसायिक क्रिया-कलापों के सन्दर्भ में आपराधिक प्रावधानों का उल्लंघन है।
अपराध का स्वरूप तथा विस्तार प्रायः किसी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं प्रौद्योगिकी परिवेश की प्रकृति को प्रतिबिम्बित करता है। जब कभी परिवेश में परिवर्तन आता है, अपराध की अन्तर्वस्तु एवं स्वरूप में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है। विज्ञान एवं तकनीकी के विकास से समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना में अनेक नवीन परिवर्तनों का जन्म होता है। समकालीन आधुनिक समाज मूल रूप से इस अद्यतन आपराधिक उपसंस्कृति के मध्य संक्रमण से गुजर रहा है, परिणामतः आतंक, हिंसा, भ्रष्टाचार एवं अपराधी व्यवहार सामान्य जनजीवन का अंग बनते जा रहे हैं। इस प्रकार स्पष्ट रूप से परिलक्षित है कि अपराध सामाजिक-सांस्कृतिक समूह का दर्पण है।
भारतीय परिवेश में यह प्रघटना वैश्वीकरण एवं सूचना-समाज के सन्दर्भ में अभिव्यक्त होती दृष्टिगत हो रही है। कम्प्यूटर, इन्टरनेट एवं संचार के अत्याधुनिक साधनों के माध्यम से विश्व के देशों, समुदायों, संस्कृतियों एवं व्यक्तियों के बीच की दूरियों का कम-से-कमतर होते चले जाना वैश्वीकरण का सूचक है। इन्टरनेट एक ऐसा कम्प्यूटर नेटवर्क है, जो विश्वभर के नेटवर्को से मिलकर बना है। इसके माध्यम से तथ्यों और सूचनाओं का आदान-प्रदान और संचार की गति अत्यधिक तेज हो गयी है। इन्टरनेट का प्रयोग बहुत कम खर्चीला और सरल है। अनेक विषयों, व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में इन्टरनेट के माध्यम से बहुत ही कम समय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा इन्टरनेट ने ई-मेल की सुविधा प्रदान करके परस्पर संचार की शैली को क्रान्तिकारी ढंग से बदल दिया है।
साइबरजनित अपराधों की रोकथाम तथा उपचार
सच्चाई यह है कि इस अपराध की भयावहता के पश्चात् भी इन पर विराम लगाना एक विकराल समस्या का रूप ले रहा है। हमारे देश भारत में इन अपराधों को रोकने के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं बनाया जा सका है। वर्तमान परिस्थिति में साइबर अपराध पर नियन्त्रण हेतु विशेष प्रकार के उपाय आवश्यक हैं। इनमें से कुछ उपाय निम्नलिखित हैं
⦁ सरकार द्वारा ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम पारित करने से यह आशा जगी थी कि इसके माध्यम से साइबर अपराधों को यिन्त्रित किया जा सकेगा, परन्तु इसके बावजूद भी यह अधिनियम प्रभावकारी नहीं हो सका। क्योंकि इसमें बहुत सारे प्रावधान व्यावहारिक नहीं है। तथा व्यावहारिक रूप से इस अपराध के लिए एक पृथक् कानून के द्वारा कठोर प्रावधान के माध्यम से दण्ड की व्यवस्था करना आवश्यक है।
⦁ साइबर अपराध रोकने के लिए इससे सम्बन्धित प्रौद्योगिकी को ज्ञान रखने वालों की एक टीम बनाना आवश्यक है। ऐसा करके किसी भी साइबर से सम्बन्धित अपराध की सूचना मिलते ही जानकारी प्राप्त कर अपराधी को दण्डित किया जा सकता है।
⦁ कम्प्यूटर द्वारा लेखा सम्बन्धी अपराधों; जैसे-गबन और जालसाजी को तभी कम किया जा सकता है, जब सम्बन्धित लेखा परीक्षकों को कम्प्यूटर सम्बन्धी प्रौद्योगिकी का उच्च स्तरीय ज्ञान हो। आज के परिवेश में बड़ी-बड़ी कम्पनियों, संस्थानों एवं बैंकों के सारे आँकड़े कम्प्यूटर पर ही रहते हैं, ऐसी परिस्थिति में इस ज्ञान के बिना इसको समुचित ढंग से परीक्षण नहीं किया जा सकता है।
⦁ भारत में BSNL संचार से जुड़ी हुई एक प्रमुख संस्था है। इस संस्था को यह स्पष्ट निर्देश देना आवश्यक है कि किसी भी परिस्थिति में अश्लील कार्यक्रम प्रदर्शित न हो सके। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक प्रगति के माध्यम से एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। ऐसी परिस्थिति में संचार निगम का दायित्व और बढ़ जाता है।
⦁ अमेरिका में साइबर अपराध को मानवाधिकार उल्लंघन से सम्बन्धित मानकर इस हेतु कठोर दण्ड का प्रावधान है। हमारे देश में भी इस आधार पर साइबर अपराधों को कम किया जा सकता है।
⦁ अधिकांश कम्प्यूटर से जुड़े अपराध किसी-न-किसी प्रकार से पासवर्ड चुराकर सम्पन्न किये जाते हैं। अत: महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की चोरी रोकने के लिए यह आवश्यक है कि पासवर्ड जटिल प्रकार के हों तथा इसका ज्ञान केवल इनका उपयोग करने वाले व्यक्ति अथवा संस्था को ही हो।
इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि साइबर अपराधों के विरुद्ध प्रारम्भिक स्तर पर ही समुचित कार्यवाही नहीं की जाती है तो मानवाधिकारों और मानवीय मूल्यों का पतन होने से कोई नहीं रोक सकता है। यह एक ऐसी परिस्थिति है कि जिससे आने वाली पीढ़ी खतरे में पड़ सकती है।