छोटे पैमाने के उद्योग का महत्त्व दर्शानेवाले तीन मुद्दे समझाइए ।
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छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व निम्नानुसार हैं :
(1) रोजगारी का सर्जन : छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है । जिससे रोजगारी के अवसर अधिक सर्जित होते हैं । जैसे – 1994-’95 में छोटे पैमाने के उद्योगों ने 191.40 लाख रोजगारी सर्जित किये थे वह बढ़कर 2011-’12 में 1012.59 लाख रोजगार देनेवाला क्षेत्र बन गया है ।
(2) उत्पादन वृद्धि : बड़े पैमाने के उद्योगों में यंत्रों का उत्पादन होता है । लेकिन उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा किया जाता है । और इन उद्योगों द्वारा तीव्र उत्पादन वृद्धि कर सकते है । वर्ष 1994-95 में रु. 4,22,154 करोड़ का उत्पादन हुआ था वह बढ़कर वर्ष 2011-12 में बढ़कर रु. 18,34,332 करोड़ का हो गया । इस प्रकार कम पूंजीनिवेश में अधिक उत्पादन किया जाता है ।
(3) निर्यात में वृद्धि : भारत की निर्यात में छोटे पैमाने के उद्योगों का योगदान उल्लेखनीय है । छोटे पैमाने के उद्योगों के द्वारा वर्ष 1994-95 में रु. 29.068 करोड़ की निर्यात हुयी थी । वह बढ़कर 2006-07 में रु. 1,77,600 तक की वृद्धि हुयी है । इस प्रकार छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग बढ़ी है ।
(4) श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति : श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति में उत्पादन श्रम पर आधारित होता है । जिसमें श्रम अधिक और कम पूँजी का उपयोग होता है । तब नियोजक और जमीन के प्रमाण को स्थिर रख सकते हैं । तथा रोजगार के अवसर भी बढ़ते है ।
(5) संतुलित प्रादेशिक विकास : बड़े उद्योगों की अपेक्षा छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी, कम साधन, कम संसाधनों द्वारा देश की किसी भी हिस्से में शुरू कर सकते हैं । जिससे मात्र विकसित प्रदेशों तक ही लाभ नहीं संतुलित विकास होता है । इस प्रकार छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा धनिकों और गरीबों, विकसित और अल्पविकसित प्रदेशों की असमानता को कम कर सकते हैं ।