ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के औपनिवेशिक शोषण के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
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अंग्रेज व्यापार करने आए थे किंतु 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल पर आधिपत्य स्थापित कर ब्रिटिश शासन की नींव डाली और सन् 1947 ई० तक भारत पर शासन किया। इस उपनिवेश की शासन व्यवस्था के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया गया। उपनिवेशी शोषण के मुख्य रूप निम्नांकित थे
1. व्यापार नीतियों द्वारा शोषण- ब्रिटिश सरकार ने ऐसी व्यापारिक नीतियों का सहारा लिया कि ब्रिटिश उद्योगों को कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति की जा सके।
(1) सरकार ने नील-निर्यात को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने किसानों को अपनी भूमि पर नील उगाने और बहुत कम मूल्य पर नील के पौधे बेचने को विवश किया।
(2) दस्तकारों को बाजार मूल्य से बहुत कम मूल्य पर सूती वस्त्र व रेशमी वस्त्र बेचने को विवश किया गया। इसके अतिरिक्त दस्तकारों को बंधक मजदूरों के रूप में काम करना | पड़ा।
(3) आयात और निर्यात शुल्कों में व्यापक परिवर्तन किए गए; यथा—
(अ) सन् 1700 के बाद छपे हुए कपड़ों का इंग्लैण्ड में आयात बंद कर दिया गया,
(ब) भारतीय वस्तुओं पर भारी सीमा-शुल्क और ब्रिटिश वस्तुओं के भारत में आयात पर बहुत मामूली शुल्क लगाए गए,
(स) भेद-मूलक संरक्षण नीति के अंतर्गत ऐसे उद्योगों को संरक्षण दिया गया जिन्हें ग्रेट ब्रिटेन के अलावा अन्य देशों से प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता था।
2. ब्रिटिश पूँजी के निर्यात द्वारा शोषण- भारत में अंग्रेजों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में विनियोग किए गए। जैसे-रेलवे, बंदरगाह, जहाजरानी, विद्युत, जल प्रबंध, सड़क व परिवहन, वाणिज्यिक कृषि, | चाय, कहवा व रबड़, कपास, पटसन, तम्बाकू, चीनी वे कागज, बैंक, बीमा एवं व्यापार, इंजीनियरिंग, रसायन व मशीन-निर्माण। ये सभी विनियोग ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय निगमों तथा अनुषंगी कम्पनियाँ बनाकर किए गए। ये निगम शोषण के प्रमुख उपकरण थे और भारत के ब्याज, लाभांश * और लाभ के रूप में धन बाहर ले जाते थे।
3. प्रबन्ध अभिकरण प्रणाली द्वारा वित्त पूँजी से शोषण- कम्पनियों के प्रबंध का कार्य प्रबंध अभिकर्ताओं को सौपा गया था। ये प्रबंध अभिकर्ता कच्चे माल, भण्डार उपकरण और मशीनों तथा उत्पादन की बिक्री जैसे कुछ कामों पर दलाली पाते थे, कार्यालय भत्ते लेते थे और लाभ का एक अंश प्राप्त करते थे।
4. ब्रिटिश प्रशासन व्यय के भुगतान द्वारा शोषण— ब्रिटिश शासकों ने नागरिक प्रशासन एवं सेना के लिए बहुत अधिक वेतन और भत्तों पर अंग्रेज अधिकारी भर्ती किए। अनेक सुविधाएँ एवं असीमित प्रशासनिक शक्ति के कारण उन्हें बड़ी मात्रा में रिश्वत मिलती थी, सेवानिवृत्त होने पर पेंशन मिलती थी। बचत, पेंशन व अन्य लाभों को वे इंग्लैण्ड अपने घर भेज देते थे। स्टर्लिंग ऋणों पर भारी ब्याज भी इंग्लैण्ड ही जाता था। इस प्रकार हमारे संसाधनों का भारी निकास (drain) हुआ।