भय के साध्य और असाध्य दोनों रूपों को सोदाहरण समझाइए।
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भय के साध्य और असाध्य दो रूप हैं। असाध्य रूप वह है जिसका निवारण प्रयत्न करने पर भी न हो सके अथवा असम्भव जान पड़े। उसका साध्य रूप वह होता है कि जिसको प्रयत्नपूर्वक किया जा सकता हो । भय के किसी कारक से यदि हम प्रयत्न करके बच सकते हैं तो यह उसका साध्य रूप माना जाएगा। उदाहरणार्थ-दो मित्र आपस में बातचीत करते हुए प्रसन्तापूर्वक एक पहाड़ी, नदी के किनारे जा रहे हैं। अचानक उनको किसी शेर की दहाड़ सुनाई देती है। इससे वे भयभीत हो उठते हैं तथा शेर से बचने के लिए वहाँ से भाग जाते हैं अथवा किसी स्थान पर छिप जाते हैं अथवा किसी पेड़ पर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार उनकी रक्षा हो जाती है। उनके इस भय को प्रयत्न साध्य कहेंगे।।
भय का कौन-सा रूप साध्य है अथवा कौन-सा असाध्य ! इसका निश्चय मनुष्य के स्वभाव पर निर्भर करता है। मनुष्य की विवशता तथा अक्षमता की अनुभूति के कारण ही किसी भावी कष्ट की अनिवार्यता निश्चित होती है। यदि मनुष्य साहसी होता है तो वह भयभीत नहीं होता है और यदि डरता भी है, तो उससे बचने का उद्योग करता है। ऐसी स्थिति में भय का स्वरूप साध्य हो जाता है। यदि उसको दु:ख के निवारण का अभ्यास नहीं होता अथवा उसमें साहस का अभाव होता है तो वह भय के कारण स्तम्भित हो जाता है तथा उसके हाथ-पैर भी नहीं हिलते। ऐसी स्थिति में हमें भय के असाध्य रूप के दर्शन होते हैं।