भारत में बेरोजगारी की समस्या के हल करने के उपाय बताकर कोई भी पाँच उपायो की चर्चा विस्तार से कीजिए ।
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भारत में बेरोजगारी के प्रमाण और कारणों के सम्बन्ध में अध्ययन पर यह स्पष्ट होता है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन अधिक से अधिक चिंताजनक बनती जा रही है । बेरोजगारी की समस्या मात्र आर्थिक समस्या ही नहीं, सामाजिक और राजनैतिक समस्या है । इसलिए भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बेरोजगारी दूर करने का लक्ष्य रखा गया है । विशेष रूप से पाँचवी और छठवीं योजना में विशेष ध्यान दिया गया । आठवीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार के अधिकार को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया गया । परंतु संभव नहीं हो सका ।
बेरोजगारी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय है :
(1) जनसंख्या नियंत्रण : बेरोजगारी की समस्या के लिए जनसंख्या वृद्धि की ऊँची दर अधिक जवाबदार है । जनसंख्या वृद्धिदर अधिक होने से श्रमपूर्ति अधिक होती है । दूसरी और आर्थिक विकास धीमी होने से रोजगार के अवसर कम खड़े होते हैं । परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । इसलिए बेरोजगारी को दूर करने के लिए असरकारक जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है । जनसंख्या वृद्धिदर धीमी होगी तो श्रमपूर्ति में कमी होगी । अर्थात् रोजगारी माँगनेवालों की संख्या कम होगी जनसंख्या नियंत्रण से साधन अधिक फाजल होंगे । पूँजीनिवेश की दर बढ़ेंगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । जनसंख्या नियंत्रण करके दीर्घकालीन समय के बाद उत्पादक आयुवर्ग (15 से 64 वर्ष) का यथा उचित नियमन भी कर सकते हैं ।
(2) । आर्थिक विकास की ऊँची दर : देश के आर्थिक विकास के बिना बेरोजगारी को दूर करना संभव नहीं है । आयोजन काल के आरम्भ के वर्षों में आर्थिक विकास की दर 3 से 3.5 प्रतिशत जितनी रही थी । यदि आर्थिक विकास को नियमित ऊँची दर से बढ़ायी जाये तो रोजगारी के अवसर बढ़ाना संभव होगा और बेरोजगारी की समस्या हल होगी । इसके लिए अर्थतंत्र के अलगअलग विभागों के बीच संकलन करके सार्वजनिक निजीक्षेत्र, सहकारी या अन्य स्वरूप के उद्योगो में पूंजीनिवेश बढ़े ऐसा प्रयत्न करना चाहिए ।
कृषि क्षेत्र का विकास हो, हरित क्रांति का लाभ सभी राज्यों को मिले ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । जिससे बेरोजगारी की समस्या को हल करने में सफलता मिलेगी ।
(3) रोजगारलक्षी आयोजन : आयोजनकाल के आरम्भ में आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए आधारभूत और बड़े उद्योगों की आवश्यकता थी । परंतु वर्तमान समय में आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसर बढ़े यह जरूरी है । इसलिए सरकार को छोटे और मध्यम पैमाने के श्रमप्रधान उत्पादन करनेवाले उद्योगो को प्रोत्साहन देकर रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए ।
(4) रोजगारलक्षी शिक्षण : वर्तमान शिक्षण व्यवस्था बेरोजगारी की समस्या के लिए जवाबदार कारण है । वर्तमान शिक्षण पद्धति क्लर्क उत्पन्न करनेवाली पुस्तकीय ज्ञान दनेवाली एक शिक्षण व्यवस्था है । परिणाम स्वरूप विनियन-वाणिज्य के स्नातक होने के बाद भी स्वयं रोजगारी प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखते है । इस परिस्थिति में सुधार हो वर्तमान व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, कृषि, अन्य क्षेत्रों के अनुरुप व्यवसायलक्षी शिक्षण देने की आवश्यकता है । इसलिए ऐसे अभ्यासक्रम लाने चाहिए जिससे वर्तमान प्रवाह के अनुरूप रोजगार एवं स्वरोजगार प्राप्त कर सके । इ.स. 2015 की नयी शिक्षण नीति में शिक्षण द्वारा रोजगारी सर्जन करने के लिए उद्योगों के साथ संलग्न साधनो उत्पादकीय शिक्षण हेतु निर्धारित किया गया है । और आनेवाले वर्षों में किस क्षेत्र में कितने रोजगार के अवसर है इसका अध्ययन करके उसी के अनुसार अभ्यासक्रम तैयार करना और इस कार्य में निजी क्षेत्रों को भी जोड़ लिया गया है ।
(5) गृह और छोटे उद्योगों का विकास : गृह और छोटे पैमाने के उद्योग कम पूंजीनिवेश में अधिक रोजगार देने की क्षमता रखते हैं । कारण कि छोटे पैमाने के उद्योगों में बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा एकसमान पूँजीनिवेश द्वारा 7.5 गुना अधिक रोजगार सर्जन की क्षमता होती है । इसलिए भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ पूँज की कमी है और श्रम अधिक है । तो कम पूँजीनिवेश में छोटे एवं गृह उद्योग स्थापित करके तथा श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करके रोजगार के अवसर खड़े करके बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं ।
(6) आंतर ढाँचाकीय सेवा का विस्तार : भारत में शहरी विस्तार की अपेक्षा ग्राम्य विस्तारों में रोजगारी का सर्जन कम होने का एक कारण अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ भी है । इसलिए राज्य द्वारा ग्राम्य विस्तार में शिक्षण, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, सड़क, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र जैसी आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ायी जाये तो स्थानिक साधनो की सहायता से अपने निवास के पास रोजगारी प्राप्त करना संभव होगा । और ग्राम्य विस्तारों में आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ने से नये रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । कृषि क्षेत्र और उसके साथ जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों में भी रोजगारी बढ़ेगी । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या हल होगी ।
(7) कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति का वेग और विस्तार : देश में ऊँची जनसंख्या वृद्धिदर के कारण रोजगारी के लिए कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का भार बढ़ने से प्रच्छन्न बेकारी और अनियमित वरसाद और अपर्याप्त सिंचाई की सुविधा कारण मौसमी बेकारी की समस्या बढ़ती गयी है । इस समस्या को हल करने के लिए अन्य क्षेत्र अभी भी सक्षम नहीं बने है । इसलिए कृषि क्षेत्र का विकास करके हरित क्रांति लाकर रोजगार के अवसर खड़े करने चाहिए ।
कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा रोजगार सर्जन की क्षमता अधिक होती है । निष्णात अर्थशास्त्री पी. सी. महालनोबिस के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 5.7% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । जबकि बड़े उद्योगों में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से मात्र 500 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 1.4% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । डॉ. एम. एस. स्वामीनाथ भी इसी का समर्थन करते हुये कहते हैं कि कृषि विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न किये जाये तो अनेक गुना नये रोजगार के अवसर खड़े होते हैं । इस प्रकार कृषि विकास में हरित क्रांति को गति और विस्तार देने से बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं ।