अनन्तकृष्ण अय्यर तथा शरतचंद्र रॉय ने सामाजिक मानवविज्ञान के अध्ययन का अभ्यास कैसे किया?
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एल० के० अनन्तकृष्ण अय्यर (1861-1937 ई०) तथा शरदचंद्र रॉय (1871-1942 ई०) को भारत के अग्रणी विद्वानों में माना जाता है जिन्होंने समाजशास्त्रीय प्रश्नों को आकार प्रदान किया। उन्होंने एक ऐसे विषय पर कार्य करना प्रारंभ किया जो भारत में न तो अभी तक विद्यमान था और न ही कोई ऐसी संस्था थी जो इसे किसी विशेष प्रकार का संरक्षण देती। अय्यर ने अपने व्यवसाय की शुरुआत एक क्लर्क के रूप में की; फिर स्कूली शिक्षक और उसके बाद कोचीन रजवाड़े के महाविद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए।
यह रजवाड़ा आज केरल राज्य का एक भाग है। 1902 ई० में कोचीन के दीवान द्वारा उन्हें राज्य के नृजातीय सर्वेक्षण में सहायता के लिए कहा गया। ब्रिटिश सरकार इसी प्रकार के सर्वेक्षण सभी रजवाड़ों तथा अन्य इलाकों में कराना चाहती थी जो प्रत्यक्ष रूप से उनके नियंत्रण में आते थे। अय्यर ने यह कार्य पूर्णरूपेण एक स्वयंसेवी के रूप में अवैतनिक सुपरिंटेंडेंट के रूप में संपन्न किया। उनके इस कार्य की काफी सराहना की गई तथा तत्पश्चात् उन्हें मैसूर रजवाड़े के इसी प्रकार के सर्वेक्षण हेतु नियुक्त किया गया। इन सर्वेक्षणों से वे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् बन गए।
कानूनविद् शरत्चंद्र रॉय भी अग्रणी समाज-वैज्ञानिक माने जाते हैं। उन्होंने कुछ अवधि तक कानून की प्रैक्टिस करने के पश्चात् 1898 ई० में राँची के एक ईसाई मिशनरी विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में कार्यभार सँभाला। कुछ वर्षों पश्चात् उन्होंने पुनः राँची की अदालत में कानून की प्रैक्टिस प्रारंभ कर दी। 44 वर्ष राँची में निवास के दौरान उन्होंने छोटा-नागपुर प्रदेश (आज को झारखंड) में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति तथा समाज का अध्ययन किया तथा वे इसके विशेषज्ञ बन गए। रॉय की रुचि जनजातीय समाज में, अदालत में दुभाषिए के रूप में उनकी नियुक्ति के कारण भी हुई। अदालत में वे जनजातियों की परंपरा तथा कानूनों को दुभाषित करते थे। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों का व्यापक भ्रमण किया तथा जनजातियों को गहराई से समझने का प्रयास किया। उन्होंने ओराँव, मुंडा तथा खरिया जनजातियों पर भी काफी कुछ लिखा तथा रॉय भारत तथा ब्रिटेन के छोटा-नागपुर के मानवविज्ञानी विशेषज्ञ माने जाने लगे।