अधिकारों के तत्त्व अथवा लक्षणों की विवेचना कीजिए।
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अधिकार के तत्त्व अथवा लक्षण
अधिकार के अनिवार्य तत्त्वों, लक्षणों अथवा विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित हैं
⦁ अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं- अधिकार के लिए समाज की स्वीकृति आवश्यक है। जब किसी माँग को समाज स्वीकार कर लेता है, तब वह अधिकार बन जाती है। प्रो० आशीर्वादी लाल के अनुसार, “प्रत्येक अधिकार के लिए समाज की स्वीकृति अनिवार्य होती है। ऐसी स्वीकृति के अभाव में अधिकार केवल कोरे दावे रह जाते हैं।”
⦁ सार्वभौमिक– अधिकार सार्वभौमिक होते हैं अर्थात् अधिकार समाज के सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्रदान किए जाते हैं। अधिकारों की सार्वभौमिकता ही कर्तव्यों को जन्म देती है।
⦁ राज्य का संरक्षण- अधिकारों को राज्य का संरक्षण मिलना भी अनिवार्य है। राज्य के संरक्षण में ही व्यक्ति अपने अधिकारों का समुचित उपभोग कर सकता है। बार्कर के शब्दों में, “मानव चेतना स्वतन्त्रता चाहती है, स्वतन्त्रता में अधिकार निहित हैं तथा अधिकार राज्य की माँग करते हैं।”
⦁ अधिकारों में सामाजिक हित की भावना निहित होती है— अधिकारों में व्यक्तिगत स्वार्थ के साथ-साथ सार्वजनिक हित की भावना भी विद्यमान होती है।
⦁ कल्याणकारी स्वरूप- अधिकारों का सम्बन्ध मुख्यतः व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास से होता है। इस कारण अधिकार के रूप में केवल वे ही स्वतन्त्रताएँ और सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक होती हैं। इस प्रकार अधिकारों का स्वरूप कल्याणकारी होता है।
⦁ समाज की स्वीकृति- अधिकार उन कार्यों की स्वतन्त्रता का बोध कराता है जो व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए उपयोगी होते हैं। समाज की स्वीकृति का यह अभिप्राय है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग समाज के अहित में नहीं कर सकता।